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३० . तपो मार्ग गति अध्ययन
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१ . आहार संबंधी चार तप को आचरण में लाए . अनशन . उनोदरी . वृत्तिसंक्षेप . रसत्याग .
२ . कष्ट सहन विषयक दो तप को आचरण में लाए . कायक्लेश एवं संलीनता .
३ . छह अभ्यन्तर तप को विकसित करें . प्रायश्चित्त . विनय . वैयावच्च . स्वाध्याय . ध्यान . उत्सर्ग .
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३१ . चरण विधि अध्ययन
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१ . अर्थ कथा , काम कथा , भक्त कथा , राज कथा से दूर रहे .
२ . आहार संज्ञा , भय संज्ञा , मैथुन संज्ञा , परिग्रह संज्ञा को अंकुश में रखें .
३ . आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान से बचने का लक्ष्य बनाए .
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३२ . प्रमाद स्थान अध्ययन
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१ . अभक्ष्य आहार एवं पेय का त्याग करें .
२ . मन , वचन , काया एवं दृष्टि को संयम से बांधने की कोशिश करें एवं इन्हें वासना से बचाने की सतर्कता रखें .
३ . पांच इन्द्रिय के आनंद की अभिरुचि काम करें . स्पर्श . स्वाद . सुगंध . सौन्दर्य . संगीत .
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३३. कर्म प्रकृति अध्ययन
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१ . आठ कर्म के बंध हेतुओं को जान ले और उस विषय में जागृत रहें .
२ . चार कषाय एवं नव नोकषाय को अंकुश में रखने का पुरुषार्थ करें .
३ . कर्म क्षय निमित्त विशेष काउसग्ग करें .
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३४ . लेश्या अध्ययन
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१ . नियमित शुभ श्रवण के द्वारा शुभ भाव में डूबे रहने से लेश्या सुधरती है .
२ . नियमित शुभ दर्शन , शुभ वांचन एवं शुभ समागम से लेश्या सुधरती है .
३ . गलत सोच जगाने वाले व्यक्ति एवं निमित्त से दूर रहे .
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३५ . अणगार मार्ग गति अध्ययन
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१ . पांच महाव्रत का विस्तृत अभ्यास करें .
२ . दशविध मुनिधर्म का विस्तृत बोध प्राप्त करें .
३ . शारीरिक एवं मानसिक सहनशीलता को बढ़ाए .
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३६ . जीवाजीव विभाग अध्ययन
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१ . षट् जीवनिकाय की विराधना से कैसे बचा जाए – इस का चिंतन करें .
२ . किसी भी जीव विराधना की अनुमोदना न करें .
३ . दैनिक जीव विराधना के लिए भाव पूर्वक मिच्छा मि दुक्कडं का प्रयोग करें .
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