भविष्य का निर्माण जैसे जरूरी है वैसे भूतकाल का शुद्धीकरण भी अति आवश्यक है . हम पुरानी गलती को ना दोहराए , सही है . लेकिन इतना काफी नहीं है . हम पुरानी गलतियों की विपरीत छाया से बाहर आ जाए यह भी आवश्यक है . आप वर्तमान में चाहे कितना भी पुरुषार्थ कर लो लेकिन कंइ बार ऐसा होता है कि अतीत का असर हम नहीं मिटा पाते हैं . विशेष साधना आवश्यक होती है , पुरानी अशुभ छाया मिटाने के लिए .
श्रीपाल राजा के जीवन में बनी हुई दुखद घटनाएं अनेक है . और हर एक घटना का संबंध पूर्व जन्म की किसी न किसी गलती के साथ जुड़ा था . साडे चार साल की नवपद की आराधना ने श्रीपालराजा के पूर्वभव कें पापों का नाश कर दिया था . कौन से पाप थें पूर्व भव के ? श्रीपाल राजा के रास में वर्णन मिलता है . श्रीपाल राजा पूर्व भव में राजा थें . नाम : श्रीकांत . शहर का नाम हिरण्यपुर . रानी जैन थी , नाम : श्रीमती . राजा जैन धर्म का प्रेमी नहीं था , बल्कि शिकार का शौकीन था . रानी लाख मना करती थी लेकिन राजा जंगल में जाकर पशुओं का शिकार करता ही रहता था . राजा का प्रथम अपराध था शिकार वृत्ति .
राजा का द्वितीय अपराध था मुनि का अपमान . एक बार राजा अपने ७०० सेवकों को लेकर जंगल में शिकार करने के लिए गए थें . वहां एक जैन साधु दिखें . राजा ने मुनि को कोढिया कहा और मजाक करने लगा . ७०० सेवकों ने राजा की उपस्थिति में साधु को विविध पीड़ा देना शुरू किया . राजा ने उन्हें रोका नहीं . राजा तो इस दृश्य को देखकर मुनि का उपहास करने लगा . हालांकि मुनि ने सब कुछ सहन कर लिया, कोई भी प्रतिभाव नहीं दिया . राजा चाहते तो सेवकों को रोक सकते थे , मुनि को बचा सकतें थें . लेकिन राजा ने मुनि को पीड़ा दे रहे सेवकों को प्रोत्साहन दिया . इस कारण राजा ने तीव्र पाप उपार्जन किया .
राजा का तृतीय अपराध था : मुनि को जल पीड़ा दी . एक बार राजा अकेला जंगल में गया था . वहां एक मुनिजी को देखा. राजा ने मुनि को नदी के पानी में गिरा दिया हालांकि बाद में दया आई तो पानी से बाहर भी निकाला . घर जाकर राजा ने रानी को बताया . रानी ने कहा यह बहुत बड़ा अपराध है . राजा ने क्षमा याचना करते हुए कहा कि ऐसा अपराध दोबारा नहीं होगा .
राजा का चतुर्थ अपराध था मुनि का घोर अपमान . राजा के शहर में एक मुनि भगवंत पधारें थें . राजा ने अपने महल के गोख से उन्हें देखा . देखते ही क्रोध आ गया . मुनि को अपमानित करके शहर से निकाला जाए ऐसा आदेश जारी किया . रानी ने मुनि अपमान का दृश्य देखा , राजा को रोका . रानी की इच्छा अनुसार मुनि जी को महल में आमंत्रित किया गया . मुनिजी पधारें . राजा ने क्षमायाचना करी और प्रायश्चित्त मांगा . मुनि जी ने कहा कि नवपद की आराधना से पाप टूटतें हैं . राजा ने नवपद की आराधना की . लेकिन चारों अपराध तीव्र थें अतः श्रीपाल के अवतार में अनेक समस्याओं में फंसे रहें .
श्रीकांत राजा का पांचवां अपराध था : ७०१ लोगों की मरण . सिंह नाम का राजा था , उसे हराने के लिए श्रीकांत राजा ने अपने ७०० सागरीतों को भेजा . ७०० सागरीत , सिंह राजा के गांव को बर्बाद करके गोधन लूंटकर वापिस जा रहें थें . श्रीकांत राजा ने सोचा था कि सिंह राजा हारेगा , लेकिन सिंह राजा ने पिछे से हल्ला करके ७०० सागरीतों को हराया और मार दिया . इतनी बड़ी लड़ाई के बाद सिंह राजा भी घायल होकर मर गया . ये ७०१ लोग मरते नहीं थें अगर श्रीकांत राजा ने युद्ध का नहीं सोचा होता तो . ७०१ लोग मरें श्रीकांत राजा की युद्ध लालसा के कारण .
सिख यह है कि आप अपने जीवन में कभी भी किसी भी साधु की निंदा नहीं करेंगे , भर्त्सना नहीं करेंगे . कोई साधु की निंदा कर रहा हो , भर्त्सना कर रहा हो तो उसे साथ नहीं देंगे . सिख यह भी है कि आप अपने जीवन में किसी भी मानवों को या पशु पंछी जलचर को कोई पीड़ा नहीं देंगे . आज आप किसी को दुःख दोगे, कल कर्मसत्ता आपको दुःख देगी . सिख यह भी है कि आपके जीवन में आज कोई दुःख चल रहा है तो इसका मतलब यह है कि आप पूर्व के जन्म में बहुत सारे अपराध करके आए हो और अपने अपराध की सजा ही हमें मिल रही है . धैर्य रखो , धर्म साधना करो और पाप क्षय का पुरुषार्थ करो . नव पद की आराधना बड़े से बड़े पाप का नाश कर सकती है .

2 comments
नव पद की ओली में क इ व्याख्यान सुने लेकिन इस बार के व्याख्यान बहुत सारी जानकारी पहली बार सुनी 🇮🇷🇮🇷🇮🇷खुब खुब अनुमोदना
आपने नौपदी के आराधना के बारे मे जो कुछ बताया बहुत खूब और इसी तरह हमे धर्म के बारे मे बताते रहे हम अवगत कराते रहे