१ . स्वर्णाष्टाग्रसहस्रपत्रकमले
गौतम गुरु जब जब देशना देते थें तब तब देवताओं के द्वारा विरचित आसन पर बिराजमान हुआ करते थें . यह आसन अनेक रूप से विशिष्ट था .
आसन की रचना देवता करते थें .
आसन कमल आकार का रहता था .
कमल नगद सुवर्ण से बनता था .
कमल की पंखुडिया १००८ होती थी .
गौतम गुरु जिसके ऊपर बैठ सके वह आसन कितने किलो का होगा ? कल्पना करने पर अनेक जवाब मिलते हैं . आज गुरु भगवंत जिस पाट पर , व्याख्यान के लिए बिराजित होते हैं वह पाट लकड़ी की होती है फिर भी उसका वजन भारी होता है . सोने की पाट का वजन कितना होगा ? सोचने की बात है . मान ले कि बीस किलो का वजन होगा सुवर्ण आसन का . गौतम गुरु , देशना के लिए जिस आसन पर बैठते थें वह आसन , आज सोने का मूल्य है जो है उस हिसाब से देखे तो आठ करोड़ बीस लाख रूपएं का होता है . एक दिन के लिए – एक , दो या तीन घंटे की जो देशना देनी है उसका आसन इतना मूल्यवान् ? क्यां गजब का पुण्य ? अब समझो एक जगह से दूसरी जगह गयें तो नइ जगह पर नया आसन बनता था . कितने क्षेत्रों में गौतम गुरु का विचरण हुआ और कितनी देशनाएं दी गौतम गुरु ने ? हर जगह जो आसन बनें उनकी सामूहिक गिनती करें तो कुल मिलाकर कितने सुवर्ण आसन बनें ? और सभी आसन का टोटल सुवर्ण मूल्य क्यां ? जैसे जैसे सोचोंगे वैसे वैसे गौतम गुरु का पुण्य प्रभाव कैसा था वह समझने लगेगा . ख़ास बात यह थी कि गौतम गुरु सुवर्ण आसन आदि आडंबर के प्रति बेपरवाह थें . उन्हें ऐसे मूल्य से कोई फर्क नहीं पड़ता था . सुवर्ण आसन देवता बनाते थें . गौतम गुरु आते थें , बैठकर देशना देते थें और बाद में खडे होकर निकल जाते थें . सुवर्ण आसन के प्रति बिलकुल भी आसक्ति नहीं बनती थी . सुवर्ण आसन के कारण कोइ अहंकार नहीं बनता था .
२ . पद्मासनस्थम्
गौतम गुरु की काया साधना के लिए अनुकूल थी . शरीर लचीला था सो प्रत्येक मुद्रा में ढल सकता था . अधिकांश पद्मासन में बैठते थें . शरीर को कठिन मुद्राओं के लिए तैयार रखा था . पद्मासन में पैरों के पंजे आसमान की तरफ रहते हैं . मानो , जमीन पर रहकर आसमान से संबंध बनाते थें . आप का व्यक्तित्व साधना मय था .
३ . मुनिम्
गौतम गुरु गजब के देशना दाता थें . जैसी देशना केवलज्ञानी देते हैं ठीक वैसी ही देशना गौतम गुरु देते थें . जब गौतम गुरु देशना देते थें तब देवता भी आते थें , बड़े बड़े राजा महाराजा भी आते थें . एक अलौकिक वातावरण बनता था जब गौतम गुरु की ध्वनि वातावरण में गूंजती थी . मशहूर थें , लोकप्रिय थें , जनमान्य थें . गौतम गुरु चाहते तो बारह महीने देशना दे सकते लेकिन वह मुनि थें . मुनि मौन का प्रेमी होता है . मुनि एकांत का प्रेमी होता है . मुनि स्व प्रचार की कामना से मुक्त होता है . गौतम गुरु देशना देने की लालसा से विमुक्त थें . ऐसा कम ही देखने मिलता है कि आप अच्छा बोलते हो लेकिन आप बोलने से दूर रहते हो . अक्सर लोग लंबा लंबा बोलना पसंद करते हैं . गौतम गुरु इस समस्या से मुक्त थें . वह मौन को प्राधान्य देते थें . मौन के अनेक आयाम है . अवसर आने पर बोलना बाकी के समय में न बोलना , यह भी एक प्रकार से मौन है . गौतम गुरु प्रभु को सुनते थें . गौतम गुरु प्रभु से अलग होकर चातुर्मास करने नहीं जाते थें . वो प्रभु से दूर जाते तो उन्हें बोलना ही पड़ता . वो सुनना चाहते थें इसलिए प्रभु के साथ में ही रहते थें . जब तक प्रभु थें तब तक वो मुख्यतया श्रोता बने रहें . मुनि अवस्था मौन से स्पंदित रहती है .
४ . स्फूर्जल्लब्धिविभूषितम्
गौतम गुरु पवित्रता का साक्षात् अवतार थें . चमत्कार करनेवाली शक्ति को लब्धि कहते है . ऐसी अनंत लब्धि गौतम गुरु में बसी थी . एक लब्धि हमें बरोबर याद है : अंगूठे अमृत वसे . आज के समय में भी ऐसे अनेक साधक है जो गौतम गुरु के परम भक्त हैं , इन महात्माओं को गौतम गुरु के मंत्र के कारण कुछ अलौकिक अनुभूतिया मिली हुई है . गौतम गुरु का नाम स्वयं एक चमत्कार है . वो जब जीवित थें तब उनका चमत्कार क्यां होगा वह तो कल्पना से परे है .
५ . गणधरम्
गौतम गुरु मुनिसमुदाय के संचालक नेता थें . शेष दश गणधरो के वो वडील थें . १४००० मुनिओं का अनुशासन उन्हें करना था . प्रभु दीक्षा दाता थें , संचालक गौतम गुरु थें . प्रभु वीर के समय में प्रभु के बाद , सबसे बड़ा पद गुरु गौतम का था . प्रभु वीर द्वारा स्थापित चतुर्विध संघ का योगक्षेम गौतम गुरु देखते थें . २१,००० साल तक चलने वाली मुनि परंपरा में सर्वप्रथम मुनिभगवान् थें गौतम गुरु .
६ . देवेन्द्राद्यमरावलीविरचितोपास्तिम्
महाचमत्कारी श्री संतिकरं स्तोत्र के रचयिता श्री मुनिसुंदरसूरीश्वरजी म. ने गौतम स्तोत्र लिखा है . बहोत सारी बातें स्तोत्र में लिखी है . एक ख़ास बात है –
चौसठ इंद्र , गौतम गुरु के दर्शन करने आते थें .
चौबीस महान् यक्ष , गौतम गुरु के दर्शन करने आते थें .
चौबीस महान् यक्षिणी , गौतम गुरु के दर्शन करने आती थीं .
सरस्वती देवी , त्रिभुवन स्वामिनी देवी , लक्ष्मी देवी एवं गणिपिटक यक्षराज , गौतम गुरु के दर्शन करने आते थें .
जो जो देव प्रभु महावीर के दर्शन करने आते थें वो सब , गौतम गुरु के दर्शन भी करते थें . इतने सारे देव देवी , गौतम गुरु के दर्शन करने का लाभ लेते थें कि गिनती न हो पाएं .
जैसे आज उपाश्रय में गुरु भगवंत को वंदन करने के लिए लोगों की भीड़ बन जाती है वैसे गौतम गुरु के दर्शन करने के लिये देवी देवताओं की भीड़ बन जाती थीं .
७. समस्ताद्भुतश्रीवासातिशयप्रभापरिगतम्
ऐश्वर्य का अवतार थें गौतम गुरु .
प्रबल पुण्योदय के धनी थें गौतम गुरु .
वैभव का प्रत्यक्ष उदाहरण थें गौतम गुरु .
आप जहां जाते थें वहां आडंबर , ठाठमाठ , दबदबा , उत्सव का माहौल बना रहता था . लेकिन वॉ कभी पुण्योदय जनित दृश्य से , वातावरण से प्रभावित नहीं होते थें .
८. योगीश्वरम्
गौतम गुरु सबसे बडे आत्म ज्ञानी थें .
गौतम गुरु सबसे बडे तपस्वी थें .
गौतम गुरु सबसे बडे ध्यानी थें .
गौतम गुरु सबसे बड़े योगी थें .
गौतम गुरु सबसे बड़े क्रिया प्रेमी थें .
गौतम गुरु सबसे बड़े आध्यात्मिक पुरुष थें . ( क्रमशः)
